बड़ी खबर ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा में है। G 7 सबमिट में हिस्सा लेने के लिए
ये बैठक कनाडा के केनेस्किकस एल्बर्ता में आयोजित हो रही है। 16 और 17 जून के दरमिया। प्रधानमंत्री का विमान 16 जून को इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर लैंड हुआ और उनकी तस्वीर के साथ एक पोस्ट आयी। G 7 में कई नेताओं से मुलाकात होगी। जरूरी वैश्विक मुद्दों पर बात होगी, ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओ पर ज़ोर दूंगा। G 7 की बैठक ऐसे समय में हो रही है जब दुनिया में भीषण उथल पुथल है। पश्चिमी एशिया में ईरान और इजरायल का संघर्ष, यूरोप में रूस और यूक्रेन के बीच जंग दुनिया का सरपंच बनने के शौकीन डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में अमेरिका ने व्यापार युद्ध एक रखा है। उनकी कहानी अलग ही है ऐसे में है की अपने ही सहयोगियों से भिड़े है ऐसे समय में।
इस बैठक में भारत के मु्द्दे क्या है और भारत कैसे अपने एजेंडा को लागू करवाने में सफलता हासिल कर सकता है,
खासकर उस मंच पर जिसका भारत औपचारिक सदस्य भी नहीं है। इन सवालों के जवाब आगे तलाशेंगे, पर पहले जानते हैं कि जी सेवेन है क्या? इसमें एशिया से जापान है? यूरोप से फ्रांस, इटली, जर्मनी और यूके। नॉर्थ अमेरिका से अमेरिका और कनाडा तीन महाद्वीप सात देश दुनिया की 10 फीसदी और कुल जीडीपी दुनिया की 44 फीसदी यूएन सिक्योरिटी काउन्सिल में भी जी सेवेन के तीन परमानेंट मेंबर है। अमेरिका, फ्रांस और यूके इन आंकड़ों और तथ्यों को एक धागे में पिरोने से निकलता है ये जी सेवेन। दुनिया के साथ सबसे ताकतवर और उद्योगों से भरे पूरे कमाए खाये देशों का गुट आड़े टेड़े प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जीस तरीके से कहिये पूरी दुनिया का चाल चरित्र तय करने में एक ताकतवर गुट G 7 जो है वो यूएन की तरह कोई आधिकारिक संगठन नहीं है। इसका अपना हेडक्वॉर्टर या तय नियमावली नहीं है। इसके बावजूद इस G 7 ने दुनिया की कई बड़ी समस्याओं को सुलझाने में मदद की है। भारत इसका मेंबर नहीं है लेकिन 2019 से लगातार इन बैठकों में आमंत्रित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए छठवाँ G 7 सम्मेलन है। G 7 का महत्त्व समझने के लिए। कुछ पॉइंटर्स पर गौर करिए ग्लोबल पॉलिसी फोरम है। इसमें शामिल सातों देश मिलकर पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा करते हैं। अर्थव्यवस्था की नजर से ये दुनिया के नौ सबसे बड़े देशों में से सात देश इसका सदस्य है।
प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया के 15 टॉप देशों में से सात जी सेवेन के मेंबर है। ये देखिए 1300 व्यूज़ 1500 व्यूज़ जी सेवेन देश दुनिया के 10 सबसे बड़े निर्यातकों में भी शामिल है। इसके अलावा जी सेवेन के सदस्य देश यूनाइटेड नेशन्स देने वाले टॉप 10 देशों की लिस्ट में भी शामिल है। ये बेसिक जानकारी है। अब थोड़ा बैकग्राउंड खंगालते है। अभी जैसा वैश्विक भूचाल साल 1973 में भी आया था। लपेटे में था अमेरिका और सहयोगी देश एक से बढ़कर एक घटनाएं और काट कभी वाटरगेट स्कैंडल, जिसकी चपेट में अमेरिकी राष्ट्रपति आए कभी वियतनाम वार्ड के खिलाफ़ प्रोटेस्ट। उधर मिडिल ईस्ट के इलाके में लगातार बदलती सत्ता हलचल मचनी तय थी। इन समस्याओं का हल निकालने के लिए 25 मार्च 1973 को अमेरिका यूके फ्रांस और वेस्ट जर्मनी तब तक जर्मनी का एकीकरण नहीं हुआ था। बर्लिन की दीवार नहीं गिरी थी ये चार देश।
और इन देशों के वित्त मंत्री वाशिंगटन डीसी के लाइब्रेरी में कट्टा हुए। तब इस गुट को जी फोर या लाइब्रेरी ग्रुप का नाम दिया गया। कुछ महीने बाद जापान भी इस ग्रुप का हिस्सा बन गया तो नाम बदल कर हो गया। जी फाइव इसी बरस अक्टूबर 1973 में एक बड़ी घटना हुई। सीरिया और ईजिप्ट जिसे हम हिंदी में मिस्र कहते हैं, इन दो देशों ने मिलकर इजरायल पर हमला कर दिया और तब अमेरिका ने इजरायल को लगभग 20,000 करोड़ रुपए की सैन्य सहायता देने का ऐलान किया। इससे अरब देश नाराज हो गए। उन्होंने इजरायल से दोस्ताना संबंध रखने वाले देशों पर प्रतिबंध लगा दिया। तेल की सप्लाई रोक दी। इसके चलते अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों में हाहाकार मचा। हालांकि अगले साल तक ये विवाद सुलझ गया, लेकिन पश्चिमी देशों को आशंका हो गई कि देश कोई बहाना बनाकर फिर से तेल की सप्लाई रोक सकते हैं। इन्हीं चिंताओं के बीच नवंबर 1975 में जर्मनी और फ्रांस ने मिलकर जी फाइव की बैठक बुलाई। फ्रांस का पड़ोसी होने के नाते इटली को भी निमंत्रण मिला। तब से ये जी सिक्स कहा जाने लगा। अगले साल यानी 1976 में कनाडा को भी इसमें शामिल किया गया और फिर इस समूह का नाम हो गया। G 7 । कालांतर में की बैठकों में यूरोपियन कमिशन और यूरोपियन काउन्सिल को भी बुलाया जाने लगा। हालांकि उन्हें कभी आधिकारिक तौर पर सदस्य का दर्जा नहीं मिला। इसके बाद आया 1990 का बरस सोवियत संघ का पतन। तमाम चिंताओं के बीच भी फिर 1998 में रूस को इस ग्रुप में जोड़ा गया और तब ग्रुप का नाम हो गया जी एयठ। हुआ ये कि तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को लगा कि अगर रूस को इस समूह में लाएंगे।तो कई फायदे होंगे, भाईचारा बढ़ेगा, शीत युद्ध का तनाव घटेगा, नैटो का दायरा बढ़ जाएगा। रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिसल भी रफ्ता रफ्ता वो मेरे पश्चिम के महिमा हो गए वाले मूड में दिख रहे थे लेकिन कुछ ही वक्त बाद उनकी सत्ता गयी और आया एक बड़ा ट्विस्ट।
इसका नाम ब्लादिमीर पुतिन।वो आए अपनी चौड़ में आक्रामक विदेश नीती। से पूरा अपना देश ही बदल कर रख दिया।