छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आए दिन हो रही हिंसा अभी एक आम बात बन चुकी है।
बीते कुछ वर्षों में नक्सली गति वीडियो में गिरावट आई है, लेकिन मुखबिरी के नाम पर की जा रही हत्याएं अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है। माओवादी यह बात बिल्कुल अच्छी तरह से समझते बूझते हैं कि उनका साम्राज्य डर की बुनियाद पर खड़ा है। एक बार आदिवासियों के भीतर से नक्सलियों का डर खत्म हो गया तो नक्सलियों के लिए अपना जनाधार बचा और बना पाना असंभव हो जाएगा।
और यही वजह है कि माओवादी आए दिन मुखबिरी के शक में आदिवासियों की हत्या कर रहे हैं। नक्सली अक्सर सुरक्षा बलों की कार्रवाई से बचने के लिए ग्रामीणों में डर का माहौल बनाते हैं। किसी व्यक्ति पर पुलिस को सूचना देने का आरोप लगाकर उसे मुखबिर कहकर मारा जाता है या रणनीति उन्हें इलाके पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करती है। कई बार ये आरोप झूठे भी होते हैं और सामाजिक रंजिश या गलतफहमी के चलते निर्दोष ग्रामीण। मारे जाते हैं। ताजा मामला बीजापुर के नक्सल प्रभावित तेद्दाकोरमा गांव का है जहाँ मंगलवार की देर शाम बड़ी संख्या में नक्सली पहुंचे और यहाँ सरेंडर नक्सली दिनेश मडियम के तीन रिश्तेदार। झिंगु मडियम, सोमा मडियम और अनिल माड़वी की हत्या कर दी। हत्या के लिए माओवादियों ने हमेशा की तरह क्रूर तरीका अपनाया। ग्रामीणों का कहना है कि तीनों ग्रामीणों को उनके घरों से निकाला गया और फिर रस्सी से गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद इलाके में दहशत का माहौल बना हुआ है। पुलिस के मुताबिक नक्सलियों ने हत्या के बाद कुछ ग्रामीणों का अपहरण भी कर लिया था, जिन्हें देर रात रिहा कर दिया गया।
दरअसल, डेढ़ महीने पहले भूतवेंडे इलाके में सकरे सीपीआइ माओवादी के डीवीसीएम सदस्य दिनेश मोरियम ने बीजापुर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था।
इस नक्सली पर पुलिस ने ₹8,00,000 का इनाम घोषित कर रखा था। गांव के लोगों का कहना है कि दिनेश के आत्मसमर्पण से नक्सली नाराज थे। बस्तर के आइजी पुलिस सुंदरराज का कहना है कि नक्सली बौखलाहट में ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। ये कोई पहला मामला नहीं है जब नक्सलियों ने ऐसी किसी घटना को अंजाम दिया हो। इससे पहले भी नक्सलियों ने कई ग्रामीणों को मुखबिरी के शक में मौत के घाट उतार दिया है। आंकड़ों की भयावहता का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि लगभग हर पांचवें दिन ऐसे लोग मारे जा रहे हैं, जिन्हें माओवादी मुखबिर कहते हैं। छत्तीसगढ़ में पुलिस मुखबिरी के शक में माओवादियों ने पिछले 1 साल में 64 आम नागरिक की हत्या की है।
विधानसभा में राज्य के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने जनवरी 2024 से लेकर फरवरी 2025 तक के जो आंकड़े पेश किए उससे पता चलता है कि माओवादियों ने मुखबिरी के शक में 60 ग्रामीणों, तीन जनप्रतिनिधियों और एक व्यवसायी सहित 64 लोगों की हत्या की है। इसके साथ ही अन्य कारणों के चलते माओवादियों ने 10 आम नागरिक की हत्या की है। इस तरह माओवादियों द्वारा 13 महीनों में कुल 74 आम नागरिक की हत्या हुई है। इस मामले पर गौर करने पर पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में हर महीने पांच से छह निर्दोष नागरिक की हत्या माओवादी कर रहे हैं।
अक्सर ऐसी हत्याओं के लिए वे कथित जन अदालत लगाते हैं। कथित इसलिए क्योंकि असल में उनकी ही अदालत होती है। उनके ही आरोप और उनकी ही गवाही पर वहीं सजा भी सुनाते हैं। इस अदालत में कथित मुखबिर की हत्या। वे बेहद क्रूर और वैसे तरीके से करते हैं ताकि लोगों में खौफ का साम्राज्य बरकरार रहे। पिछले कुछ सालों के आंकड़े बताते हैं कि युद्ध क्षेत्र में बदल चूके। बस्तर में माओवादियों और पुलिस के जवान।जितनी बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं, उसका लगभग चौथाई आंकड़ा ऐसे लोगों का है, जिन्हें मुखबिर बताकर मारा गया है। इधर, नक्सलियों द्वारा तीन ग्रामीणों की हत्या को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और वकील वेला भाटिया ने कहा है कि अपराध है। उन्होंने एक बयान में कहा कि पेद्दा कोमा में
की गई तीन लोगों की हत्या और सात लोगों के साथ मारपीट अत्यंत निंदनीय है। किसी भी मनुष्य की हत्या किसी के भी द्वारा की जाए एक अपराध है। इस तरह की घटना बस्तर में युद्ध विराम और शांति व न्याय के लिए की जा रही सार्वजनिक कोशिश को नुकसान पहुंचाएगी।