ट्रंप के इस पोस्ट पर जमकर विवाद हो रहा है।
ट्रंप ने कहा की,नताशा बर्टन को सीएनएन से निकाल देना चाहिए। मैंने उन्हें तीन दिन तक देखा और उन्होंने लगातार झूठी खबरें दिखाईं। उन्हें तुरंत फटकार लगानी चाहिए और फिर कुत्ते की तरह बाहर फेंक देना चाहिए!
यह भाषा किसी सड़क पर हो रही लड़ाई की नहीं है, ना ही यह भाषा दो बच्चों के बीच हो रही लड़ाई की है। आपने जो शुरुआत में लाइनें पढ़ी हैं, वो एक देश के राष्ट्रपति की हैं। ये उनके देश के प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल सीएनएन में काम करने वाली पत्रकार के लिए हैं। पत्रकार का नाम है नताशा बर्टन। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर 25 जून को एक पोस्ट किया जिसमें नताशा बर्टन के लिए उन्होंने ये बातें लिखीं। ट्रंप के इस पोस्ट पर जमकर विवाद हो रहा है। लेकिन ट्रंप यहीं नहीं रुके। वो इसके बाद से ही लगातार सीएनएन और न्यूयॉर्क टाइम्स को फेक न्यूज़ कहते हुए पोस्ट कर रहे हैं।
उधर, सीएनएन ने ट्रंप के नताशा को लेकर दिए बयान पर एक ऑफिशियल स्टेटमेंट भी जारी किया है। सीएनएन ने कहा है कि वो 100% अपने सहयोगी के साथ हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक स्टेटमेंट जारी कर नताशा की स्टोरी को वेरीफाई किया है और फेक न्यूज़ के खिलाफ रिपोर्ट करते रहने की बात दोहराई है। अब सवाल यह है कि नताशा बर्टन आखिर है कौन? क्यों ट्रंप उनकी स्टोरी को लेकर बौखला गए? सीएनएन की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, नताशा वाशिंगटन डीसी में कॉरेस्पोंडेंट हैं और नेशनल सिक्योरिटी कवर करती हैं। नताशा गाजा में इजराइल की तरफ से इस्तेमाल किए गए दम बमों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल और सेक्रेटरी ऑस्टिन की हॉस्पिटलाइजेशन से जुड़ी गोपनीयता की स्टोरीज के लिए जानी जाती हैं।
वेबसाइट के मुताबिक, नताशा ट्रंप के पहले कार्यकाल के आखिर में गायब हुए रूसी इंटेलिजेंस वाइंडर यानी खुफिया जानकारी रखने वाले को लेकर भी स्टोरी का हिस्सा रही थीं। इसके अलावा, यूक्रेन में रूस के आक्रमण के बाद नाटो से ग्राउंड कवरेज को लेकर उन्हें अवार्ड भी मिल चुका है। सीएनएन ज्वाइन करने से पहले, नताशा बर्गेन्ट, पॉलिटिको, द अटलांटिक और बिजनेस इनसाइडर का हिस्सा रह चुकी हैं। यहां भी उन्होंने नेशनल सिक्योरिटी और पॉलिटिक्स लीड को कवर किया है। नताशा 2014 में वाटसन कॉलेज से ग्रेजुएट हैं। उनकी पॉलिटिकल साइंस और फिलॉसफी में ड्यूअल डिग्री है। अब बात नताशा बर्टन की उस स्टोरी की, जिसे लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने पोस्ट किया। 26 जून को सीएनएन की वेबसाइट पर एक रिपोर्ट पब्लिश हुई।
यह रिपोर्ट एक्सक्लूसिव थी। इसमें यूएस की शुरुआती इंटेलिजेंस के असेसमेंट का हवाला दिया गया और दावा किया गया कि अमेरिका का ईरान के तीन न्यूक्लियर फैसिलिटी सेंटर्स पर हमला कर उन्हें खत्म नहीं किया जा सका। इसमें यह भी बताया गया कि इस हमले में ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को बस कुछ महीने पीछे धकेल दिया है। इसी खबर को लेकर ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नताशा बर्टन और सीएनएन को लेकर कई पोस्ट किए, जिसमें उन्होंने लिखा कि वो न्यूक्लियर फाइट की स्टोरी में झूठ बोलकर हमारे देशभक्त पायलट को बर्बाद करना और बुरा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें फेक न्यूज़ सीएनएन में काम करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। ट्रंप के इस बयान पर अब सीएनएन का भी बयान सामने आया है।
उन्होंने नताशा का समर्थन करते हुए कहा कि हम अमेरिका की ओर से ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटी पर किए गए हमले के शुरुआती इंटेलिजेंस असेसमेंट के आधार पर की गई रिपोर्टिंग के लिए शत-प्रतिशत नताशा बर्टन और उनके सहयोगियों के साथ खड़े हैं। और इस खबर को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स की ओर से एक बयान आया, जिसमें कहा गया है कि ट्रंप जिस खबर को फेक बता रहे हैं, वो उनकी ही नेशनल सिक्योरिटी टीम और डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की शुरुआती रिपोर्ट पर बेस्ड है। खैर, इस पूरे मामले से एक बात फिर साफ हो जाती है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा सिर्फ पत्रकारों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि नेताओं को भी उतनी ही जिम्मेदारी से अपनी भाषा और अपने इंपैक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए।
डोनाल्ड ट्रंप जैसे व्यक्ति जब प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करते हैं, तो वो सिर्फ किसी पत्रकार या चैनल पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र के उस स्तंभ पर चोट करते हैं जो सत्ता से सवाल पूछने का साहस रखता है। ट्रंप को समझना होगा कि ताकतवर होना और जिम्मेदार होना – ये दोनों बातें साथ चलती हैं। आलोचना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन उसकी भाषा में जहर नहीं, समझदारी होनी चाहिए। सच का रास्ता अगर असहज भी लगे, तो भी उसे कुचलने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए क्योंकि जब सच पर हमला होता है, तो इतिहास गवाह है कि वो और बनकर सामने आता है।