नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 2022 में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की दर्ज संख्या 4.5 लाख से अधिक बताई। इनमें बलात्कार भी शामिल है और हत्याएं भी।
और ऐसा मामला छत्तीसगढ़ से भी आया है।इन आंकड़ों को देखें तो, 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किए गए; 2021 में 4,28,287 मामले दर्ज किए गए; और 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज किए गए। इन आंकड़ों से साफ है कि हर साल महिलाओं के साथ अपराध के मामले बढ़ते जा रहे हैं। NCRB के आंकड़े बताते हैं कि इन 3 सालों में 6,450 महिलाओं की हत्या का कारण दहेज रहा। 248 महिलाओं को गैंग रेप और रेप करके मार डाला गया। 4,963 महिलाओं को सुसाइड करने के लिए उकसाया गया। 124 महिलाओं पर एसिड फेंका गया। 85,310 महिलाओं का अपहरण किया गया।
इसके अलावा, 2022 में पूरे देश भर में बच्चियों की खरीदी के 3 मामले सामने आए, जिनमें 2 मध्य प्रदेश के और एक मामला छत्तीसगढ़ से सामने आया। आंकड़ों से घबराइए नहीं, आंकड़े अभी और हैं। यह जो महिला अपराध के 4,45,556 मामले सामने आए हैं, इनमें से 1,40,019 मामले पति और उनके रिश्तेदारों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार के मामले हैं। अदालत में पतियों और रिश्तेदारों द्वारा अत्याचार के देश भर में 7,29,301 मामले लंबित हैं। लेकिन, यह सरकारी आंकड़े हैं जो दर्ज हैं। इनमें पांच गुना अधिक मामले ऐसे होंगे जो बाहर नहीं आए या दर्ज ही नहीं किए गए। यह आंकड़े 2020 से 2022 तक के हैं। इन आंकड़ों के जारी होने के 3 साल बाद के आंकड़े और चौंकाने वाले और भयानक होंगे।
लेकिन, इस पर चर्चा करने की बजाय, कुछ एक अपवादों से सारी महिलाओं को अपराधी साबित करने की कोशिश या किसी घटना विशेष को खास कारणों से प्रचारित कर महिलाओं पर बंदिशों को सही ठहराने की कोशिश बताती है कि महिलाओं को बंदिशों में रखने और उन पर पुरुषवादी सोच थोपने के लिए हमारा समाज कितना उतावला है। छत्तीसगढ़ में जो ताजा अकड़े आए है,वह तथ्य हैं, लेकिन ऐसे आंकड़े किसी को चौंकाते नहीं। सोनम रघुवंशी जैसे मामलों में चुटकुले गढ़ने वालों को जानकर आश्चर्य होगा कि नक्सल घटनाओं को छोड़कर अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले छत्तीसगढ़ में हर चौथे दिन किसी पति ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी। आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में लगभग हर दिन 3 मामले जो दर्ज किए गए हैं, उनमें महिलाओं पर पति और उनके रिश्तेदारों द्वारा अत्याचार के मामले हैं। छत्तीसगढ़ में साल भर में 942 मामले महिलाओं पर पति और उनके रिश्तेदारों के द्वारा अत्याचार के हैं।
आइए कुछ उन घटनाओं का जिक्र कर लेते हैं जिन घटनाओं ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। पहला मामला है जशपुर जिले के पंद्रह पार्ट क्षेत्र में। यहां एक शादी समारोह के दौरान चावल, तेल और कपड़ों की चोरी करने वाली महिला की जंगल में पीट-पीटकर उसके पति ने जान ले ली। हत्या के मामले में हत्या पर पर्दा डालने के लिए आरोपी ने शव को घास फूस व पत्तों से ढककर फरार हो गया। फिर 5 दिन के बाद शव की दुर्गंध से पूरे मामले का खुलासा हो पाया। दूसरी घटना बिलासपुर के सकरी थाना क्षेत्र से सामने आई, जहां गौरी शंकर साहू नामक पति ने अपनी पत्नी रत्ना साहू के बीच बच्ची की छठी मनाने को लेकर विवाद हुआ। गुस्से में गौरी शंकर ने तवे से पत्नी के सिर पर और उसके चेहरे पर कई बार वार किए। रत्ना की मौके पर ही मौत हो गई। तीसरा मामला भी छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से सामने आया, जहां पति ने अपनी पत्नी की गमछे से गला घोंटकर हत्या कर दी, जिसके बाद उसकी लाश को नहर किनारे छोड़कर भाग निकला। पुलिस ने मामले की जांच के बाद आरोपी पति को गिरफ्तार किया।
चौथा मामला भी 2 दिन पहले का ही है, जशपुर जिले से सामने आया है, जहां एक शराबी पति ने अपनी पत्नी समेत दो बच्चों की हत्या कर दी और शवों को उदयान नदी में दफन कर दिया। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी पति फरार हो गया है। इसके अलावा भी कई ऐसे मामले हैं जिसमें महिलाओं के साथ जघन्य अपराध किए गए हैं। इनमें मौत के अलावा घरेलू हिंसा और बलात्कार जैसी घटनाएं हैं। आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में, भारत में, हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं। यानी हर 20 मिनट में एक रेप हो रहा है। क्या हमें छत्तीसगढ़ में जो 30 हत्याएं हुई हैं, उन हत्याओं की वजह क्या थी, इसे भी जान लेते हैं? छत्तीसगढ़ में इन 30 हत्याओं में 10 से अधिक हत्याएं शक या ईर्ष्या के कारण हुईं।
छह हत्याएं नशे की हालत में, दो हत्याएं शारीरिक संबंध से इनकार करने पर, और बाकी घरेलू हिंसा, दहेज विवाद या वैवाहिक तनाव के कारण हुई हैं। ये घटनाएं हर दिन कई महिलाओं के साथ घट रही हैं। कभी उन्हें दहेज के नाम पर जलाया जा रहा है, कभी चरित्रहीन होने के नाम पर, कभी नशे में हर दिन महिलाएं मौत के घाट उतारी जा रही हैं। लेकिन बीते दिनों की दो घटनाओं ने महिलाओं को कटघरे में खड़ा तो कर ही दिया है, जिसमें महिलाएं क्रूर हैं। दरअसल, 6 महीने पहले हुई अतुल सुभाश की मौत, जिसमें उन्होंने पत्नी की प्रताड़ना पर वीडियो बनाकर फांसी लगाई और अब ताजा मामले में, सोनम रघुवंशी ने अपने पति राजा रघुवंशी की सिलोंग में साज़िश के तहत हत्या की। इन दोनों ही मामलों ने देश में तूफ़ान खड़ा कर दिया।
सोशल मीडिया से लेकर टीवी न्यूज़ तक में, महिलाओं को अदालत के फ़ैसले से पहले ही अपराधी की तरह प्रस्तुत कर दिया गया। सोशल मीडिया में तो बाढ़ आ गई महिलाओं पर बनने वाले मीम्स की। पतियों को सावधान रहने और चौकन्ना कर देने वाले कमेंट्स और पोस्ट तो अटे पड़े हैं। दरअसल, सोनम रघुवंशी, मुस्कान रस्तोगी, निकिता सिंघानिया, ये उन महिलाओं के नाम हैं जिन्हें अलग-अलग मामलों में गिरफ़्तार किया गया। एक समानता यह थी कि तीनों ही मामलों में मृतक इनके पति थे। दूसरी यह कि तीनों ही मामलों में उनके महिला होने को मुद्दा बनाकर वही सवाल दोहराए गए: महिलाओं को ज़रूरत से ज़्यादा अधिकार मिल गए हैं, उन्हें सीमित करने की ज़रूरत है। महिला विरोधी यह नैरेटिव हर बार इस बात पर ही आकर रुकता है कि पुराने ज़माने में महिलाओं के पास कोई स्वतंत्रता और क़ानूनी अधिकार नहीं था। इसलिए वह दौर ही बेहतर था।
पढ़ने-लिखने वाली महिलाएं ही इस तरह की घटना को अंजाम दे रही हैं। महिलाओं को इतनी स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए थी, ऐसे तमाम नैरेटिव्स सेट करने की कोशिश शुरू कर दी गई। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी की पीएचडी स्कॉलर, एलिजाबेथ ए. कुरियन ने अपने एक रिसर्च पेपर में लिखा था कि जो महिलाएं हत्या करती हैं उन्हें एक महिला के तौर पर दिखाया जाता है, लेकिन एक पुरुष हत्यारे को सिर्फ एक हत्यारे के तौर पर। जब महिलाएं किसी भी तरीके के अपराध में शामिल होती हैं, ख़ासकर गंभीर आपराधिक मामलों में, यहां उनके अपराध के साथ-साथ उनके जेंडर को भी कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। किसी भी अपराध की वकालत नहीं की जा सकती, लेकिन किसी अपराध की आड़ लेकर पूरे वर्ग को अपराधी की तरह पेश करने की कोशिश और फिर उस कोशिश में अपनी सोच को थोपने की धूर्तता पूर्ण तर्कों से सावधान रहने की ज़रूरत है।